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कई रंग हैं, कई रूप हैं।
कहीं छांव है , कहीं धूप है।
पर स्वाद सबमे एक है,
चटकार सबमे एक है।
हम खाने मे भाव जगाते हैं
जो सबको कितना भाते हैं ।।
कुछ तीखे हैं, कुछ फीके हैं।
कुछ हैं थोड़े रसीले ,
रंगो मे काले पीले।
ये वर्षों की पहचान है
परंपरा की खान है।
जगह-जगह कुछ खास मिलेगा
कुछ बदला अंदाज मिलेगा।
कहीं कतारें लंबी होंगी
कहीं व्यंजन का भंडार मिलेगा।
बचपन की यादें हैं इनमे
यौवन का रुझान बड़ा
बुढ़ापे का भी स्वाद है कायम
सबका है सम्मान जुड़ा।।
मुंह मे पानी, आंख मे पानी
तरह-तरह के दिखे प्रभाव।
सबका अपना-अपना स्वाद
बस बना रहे सबमे संभाव।।
Aditya Adi Mishra