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खुद की समस्या को अपने तक सीमित रखना, एक कला है। हम अपने भीतर होने वाली उथल-पुथल को अगर बाहर लेकर आते हैं , तो ये सबसे जरूरी है कि सामने जो समझने वाला हो, वो भी आपकी बातों को समझे। हम social media पर दिल खोलकर तो रख देते हैं, पर वास्तव में ये सामने वाले के लिए मौका होता है, जिसपर वो पूरा मजा लेता है।
दूसरों से बातें share करना अच्छी बात है, पर थोड़ी समझ के साथ।
क्यूं हम जताये कि हम कमजोर हैं।
हमें संवेदना प्रकट करने वाले तो मिल जाते हैं, पर समाधान अंततः हमें खुद से ही मिलता है।
दोस्त हजार होते हैं , पर सच्चे दोस्त कम ही होते हैं । इसीलिए ये बहुत जरूरी है , जानना कि हम कहां मुंह खोलें और कहां चुप रहें।
बिल्कुल सही कहा आपने कब और कहाँ बोलना है यही बोलने की खूबसूुरती हैं|
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Ji thanks
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सत्य कहा आपने। सजग रहकर बोलना बहुत सराहनीय बात होती है।
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बहुत धन्यवाद
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स्वागतम्
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