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हमारी उम्र लगभग एक सी ही थी। पहनावा भी देखने में एक जैसा ही लग रहा था। बस फर्क था, मैं कुर्सी पर बैठा था और वह हाथ बांधे खड़ा हुआ था। उसने झुककर मुझसे पूछा सर चाय पिएंगे? पहले तो मैंने उसे ध्यान से देखा और फिर सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्या है, जिसने हम में इतना फर्क पैदा कर दिया। जिसने उसे काम करने वाला बना दिया और मुझे कुर्सी पर बैठकर आदेश देने वाला। हालांकि मुझसे ज्यादा शालीनता थी, उसमें। मुझसे ज्यादा अद़ब था और मुझ से ज्यादा प्यारे लहज़े में बात कर रहा था। गरीबी और शिक्षा की कमी इंसान को काफी पीछे कर देती है। हमें इसीलिए सबसे पहले खुद को शिक्षित करना चाहिए। फिर सोचना चाहिए जिंदगी की कहानी क्या होगी! क्योंकि बिना शिक्षा के आप कुछ नहीं हैं। मैं वहां का कोई बॉस नहीं था, कोई अधिकारी नहीं था। मैं सिर्फ एक आगंतुक था और हम दोनों एक दूसरे से अनजान थे। वह चाहता तो मुझे हम उम्र समझ कर बेतरतीब तरीके से बात कर सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने अपना धर्म निभाया और मुझसे पूरे अद़ब से बात की और पूछा सर आप कुछ लेंगे। सुनकर मेरा दिल भर आया क्योंकि हम एक जैसे ही थे। “धन्यवाद , नहीं।” मैने जवाब दिया। मैं वहां से उठकर आने लगा तो वह देख कर मुस्कुराया। मैं उसके पास गया और पूछा क्या नाम है तुम्हारा? वह बोला -हेमंत। इस वक्त भी उसके लहज़े में पूरी अद़ब थी। मैंने पूछा यहां काम करते हो उसने कहा, जी हां। उसके एक हां ने, मेरे काफी सारे सवालों के जवाब दे दिए। उसके एक हां ने, शिक्षा का मोल समझा दिया और यह बता दिया कि जब गरीबी आपके दरवाजे पर होती है। तो शालीनता का चादर ओढ़ कर ही बाहर निकला जाता है। मैने आते हुए, हाथ मिलाया और धन्यवाद देकर चल दिया। इससे सीखें तो बड़े लोग, जिनकी जेब में थोड़े से पैसे आ जाते हैं तो उनका सिर ऊपर उठ जाता। उन्हें लगता है, उनके पांव जमीन पर नहीं है। उन्हें यह समझना चाहिए कि जो उनके पास है, उससे वह किसी दूसरे का भला कर सकते हैं। लेकिन यह शहर है, यहां बस लोग हंसते हैं, मुस्कुराते हैं और सारी बातें दिल में छुपाते हैं।
Nice thoughts. Let no soul be deprived of education, let no nor be left behind
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Thanks for your appreciation
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My pleasure
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