#Independenceday #Delhi_metro #adityamishravoice #सफर_प्यार_वाला
जिंदगी भी मेट्रो सी बढ़ती रहती है, कभी लोगों का हुजूम नजर आता है तो कभी सब खाली खाली सा रहता है। लेकिन इसी खालीपन के बीच अचानक तुम राजीव चौक सी मेरी जिन्दगी में आई। मैं सम्भल भी गया और सिमट भी गया। तुम तो सावधानी से दिल में बैठ गयी क्योंकि दिल तो बार बार यह कह रहा था, कृपया महिलाओं और दिल की उम्मीदों को सीट दें।
वैसे बैठा तो मैं भी था, पर हमारे हाथ मेट्रो के हिलने डुलने से टकरा रहे थे। आवाज बाहर तक नहीं आ रही थी, क्योंकि “कृपया मेट्रो में संगीत न बजायें”। लेकिन कौन समझाए कि दिल में भांगड़ा बज रहा था। सफर हमारा 8-10 स्टेशन का रहा और इतनी देर में कई ख्याल “दरवाजे बाईं या दाईं तरफ खुलने से” चढ़ उतर रहे थे। पर दरवाजे पर नहीं, सफर पर ध्यान दे रहा था।
अगला स्टेशन आखिरी है, दरवाजे दाईं तरफ खुलेंगे। साथ ही इसमें यह संकेत था कि अब दिल की गाड़ी यहीं तक जायेगी, कृपया अपना सामान ले जाना ना भूलें।
पर सफर पर ध्यान देने के चक्कर में एक भूल हो गई। अपना दिल हम वहीं उनके पास छोड़ आए। वह भी मेट्रो से उतरी और एग्जिट कर गई , पर दिल से या मेट्रो से, मैं इसी सोच में पड़ रहा। वैसे दिल की दिल्ली मेट्रो में यात्रा करने के लिए धन्यवाद, आपका दिन शुभ हो।
Awesome-sauce ideology, on mundane issue of Delhiwala’s life , like metro and heated debates politics, poetry # Awesome representation.
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Thanks brother
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