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दशहरा, हम बच्चों के लिए ऐसा दिन, जब हम अपनी सारी जमा पूंजी – जिनमें रिश्तेदारों से मिला हुआ पैसा, स्कूल के लिए हर दिन का जेब खर्च और उसमें से बचा पैसा. साथ ही साथ और भी बहुत सारे उपायों से जो कुछ हम अर्जित किया करते थे. दशहरे के दिन उसे खर्च करने का एक अलग ही मजा होता था। इसके साथ ही घरवालों, रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों से मेला देखने के लिए वसूली की जाती थी।
इसमें एक दिलचस्प बात और होती थी कि घरवाले हमें यह सुझाव दिया करते थे कि अभी और भी छोटे-मोटे मेले पड़ेंगे और उसके लिए पैसे बचा लेना, सब आज ही मत खर्चा कर देना।
दशहरे की दुनिया सबसे अलग हसीन और खुशनुमा होती है। जिसके लिए हम लंबी-लंबी प्लानिंग किया करते थे. उस प्लानिंग में खाने से लेकर खिलौने तक की लंबी लिस्ट रहती थी. जिसमें काट छांट करने के लिए घर के बड़े तैनात रहते थे।
• सबसे बड़ा टास्क होता था, कौन मेला दिखाने लेकर जाएगा. कई बार तो यह कहकर हमें मना कर दिया जाता था कि दशहरे में काफी भीड़ होती है, खो आओगे। वास्तव में कहीं न कहीं इसमें सच्चाई भी है, लेकिन हम फिर भी उसे उनका बहाना समझते थे।
• कई बार दोस्तों के साथ मेला घूमने की परमिशन मिल जाती थी लेकिन उसमें भी कंडीशन तय कर दी जाती थी कि इतने समय तक वापस आ जाना, लेकिन उसका भी एक अलग मजा हुआ करता था।
• चांदनी रात के उजाले में दुर्गा पूजा देखकर जब घर के लिए बाजार से निकलते थे और रास्ते में हंसी ठिठोली करते हुए वापस आते थे, ऐसे में सारी थकान अपने आप उतर जाती थी.
• दशहरे का मेला आज भी लगता है, लेकिन बच्चों में अब वह उत्साह नजर नहीं आता. ना पहले की तरह चाट और पकौड़ी खाने का शौक. ना ही, खिलौनों के लिए जिद.
• खिलौना खरीदना भी अपने आप में बड़ी समस्या हुआ करती थी, हमें पसंद तो बहुत कुछ आता था. लेकिन पहला पैसे लिमिटेड मात्रा में होते थे और उसी में हमें सब कुछ करना होता था. दूसरा कोई भी खिलौना खरीदने से पहले जिस बड़े बुजुर्ग के साथ आप मेला देखने गए हैं, उसको मनाना बड़ी बात हुआ करती थी. ऐसे वक्त में आप खुद ही दुकानदार और ग्राहक बन जाया करते थे. हम खुद ही समझाते थे कि यह मजबूत है, टिकाऊ है, लंबे समय तक चलेगा, मैं इसे तोडूंगा•• नहीं वगैरा-वगैरा.
• अब दशहरे में ना वैसी भीड़ हुआ करती है, ना घर वालों को खो जाने का फिकर सताता है। दूसरी तरफ अब मोबाइल में इतने सारे गेम आ गए हैं कि दशहरे में खिलौने की दुकान पर महज धूल उड़ा करती है. दौर बदल गया है, दशहरा भी बदल गया है और दशहरे में आने वाले लोग बदल गए हैं।
Adityamishravoice
हम कह सकते हैं कि कोई भी भूत काल बेहतर था। बच्चों के अनुभव बहुत बदल गए हैं। आधुनिक सफलता और जीवन का नया तरीका बच्चों को एक और मज़ा देता है। आपकी कहानी बहुत अच्छी है।
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Ji thank you sir.
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आपको भी दशहरे की बहुत-बहुत शुभकामनाएं …🍁🍁
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Ji बहुत धन्यवाद🙏 जय श्री राम
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