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इस तेजी से फिसलते माहौल में जींस और जिंदगी कितनी भी फिटिंग की हो बेल्ट लगाना ही पड़ जाता है। जब हमारी उम्मीदें और जरूरतें बढ़ जाती है तो हमें कमर कसनी पड़ती है। लेकिन कमर कसना क्या इतना आसान है?
जब बात संतुलन की हो, हमें ना खुद का भरोसा होता है, ना कमर का. इसीलिए फिटिंग वाली जींस भी हम बिना बेल्ट के नहीं पहनते। वास्तव में फ्लैक्सिबिलिटी हर एक मौके पर जरूरी होती है।
राजनीति में ही देख लो, जो नेता 5 साल जनता का मुंह नहीं देखते, वह भी चुनाव में घर जमाई बन जाते हैं। हालत तो सबकी खराब है, पर सब ने अपना अपना बेल्ट ले रखा है। जिनके पास अपना नहीं है, वह भी कसने की कवायद करता दिख जाता है।
वैसे बेल्ट के भी अपने-अपने प्रकार होते हैं। कई बेल्ट सिर्फ दिखाने के लिए लगाये जाते हैं, जो आंतरिक मतभेदों पर पर्दा डालकर संतुलन का प्रचार करते रहते हैं। उसी तरह कुछ बेल्ट उतारने के लिए पहने जाते हैं, जिनका इस्तेमाल संतुलन बिगड़ने से लेकर सुधारने तक में होता आया है।
बेल्ट भी आजकल विश्वास के मानक पर खरा नहीं उतर रहे हैं। इसीलिए तो लोग अब कमर कसने के अलग उपाय खोजने लगे हैं। इस डिजिटल जमाने में तो वर्चुअल बेल्ट भी लोग इस्तेमाल करते दिख जाते हैं। इसमें आपको ना बेल्ट दिखता है, ना लगाने वाला. इस टेक्नोलॉजी में आपकी कमर डिजिटल तरीके से कसी जाती है। वह अलग बात है कि कई बार तकनीकी खराबी गला तक कस जाती है।
संतुलन जरूरी है क्योंकि बिना संतुलन ना प्यार हो सकता है, ना प्रचार. ऐसे में आवश्यक है कि फिटिंग जींस के साथ बेल्ट का भी ख्याल रखें। क्योंकि बदलते दौर में कब कितनी कमर कसनी पड़ सकती है, कहा नहीं जा सकता।
-Adityamishravoice
सही तुलना की है, जीन्स और बेल्ट से, अंकुश की जरूरत है इस दुनिया में, हर इंसान पर, चाहे वो कमर हो या गला, वरना दिमागी संतुलन बिगड़ने में ज़रा देर नहीं लगती…
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धन्यवाद आपका
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Great post
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Thanks
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