LockDown में ‘सुबह की सुगबुगाहट’

Adityamishravoice

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कोरोनावायरस के चलते लॉक डाउन का 21 दिवसीय संघर्ष जारी है। आज इसका तीसरा दिन है, शुरू के 2 दिन यूं ही आरोप-प्रत्यारोप और सोचने-समझने में चले गए। आखिर में यह समझ आने लगा कि ‘घर ही अपनी मंजिल है।’

ख़ैर जैसा कल सोचा था, उसके ठीक 30 मिनट बाद सुबह नींद खुल ही गई। फिर बाहर दरवाजे की तरफ निकल पड़े। एक बात है, घर में लगी इलेक्ट्रिक लाइट्स आपको काफी भ्रमित करती हैं। बाहर अभी सिर्फ आसमान के किनारों पर हल्की सफेद/पीली पट्टी दिख रही थी, जिसके ऊपर-नीचे लाल गुलाल का छिड़काव हो रखा था। चिड़ियों की चहचहाहट दूर बागों से आ रही थी।

अब सोचा थोड़ा बाहर निकला जाए 10 कदम चलते ही कुत्तों की एक फौज पेट्रोलिंग कर रही थी। देखते ही भौंक कर उन लोगों ने अपनी धाक जमानी शुरू कर दी। जैसे यह कहना चाह रहे हो, अभी तुम्हारे उठने का टाइम नहीं है। तुम शहर वाले हो, तुम्हारे यहां सुबह थोड़ी देर से होती है। एक छोटा तो कुछ ज्यादा ही तेजी से भौंक रहा था। जैसे कह रहा हो, अरे! ये तो शहर वाले 1 दिन घूमने निकलते हैं, 10 फोटो खींचते हैं और अगले 10 दिन वही #morningLove चलाते रहते हैं।

जैसे-जैसे घर से दूर जा रहा था लाइट की तलाश में आंखें खुलती जा रही थी। धरती के सारे जीव चलायमान हो गए थे, मैंने सोचा हम इंसान सच में काफी पीछे हैं। सुबह की नींद कभी मिस नहीं करते, इसलिए शायद जिंदगी में बहुत कुछ मिस कर रहे हैं।

रास्ते में कुछ लोग तैयार होकर अपने कर्तव्य का पालन करने निकल रहे थे। इनमें ज्यादातर कर्मचारी लॉक डाउन के चलते काफी मेहनत कर रहे हैं। मैं मन ही मन उनको धन्यवाद दे रहा था, तभी एक ने मुस्कुरा कर पूछा-एक्सरसाइज! मैंने कहा- जी। फिर उधर से हमारी भारतीय संस्कृति का सबसे अहम पहलू सामने आया। उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ मुझसे कहा कि “समय से वापस चले जाना, बाहर निकलना अभी सही नहीं है।”

आसमान में गुलाल की मात्रा बढ़ने लगी थी, साथ ही पीली/सफेद पट्टी का दायरा भी बढ़ गया था। हलचल तेज हो गई थी, आवाजें और आने लगी थी, एक पुल पर शांति से बैठ गया। आंखें बंद की और उन आवाजों में खो गया।

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