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जब से लॉक डाउन हुआ है, घर के बाहर और मन के अंदर काफी शांति हो गई है। एक निश्चित दायरा और अनुशासन के बीच पिछले कई दिनों से जिंदगी घूम रही है। शुरू के कुछ दिन काफी एक्साइटमेंट रहा, फिर बोरियत महसूस होने लगी। लेकिन अब ठहराव आ गया है, यह पल हमारी आदत में आ चुका है। शायद यही कारण है कि अब कुछ भी अजीब नहीं लगता बाहर की खाली सड़कें, चिड़ियों का कोलाहल, शुद्ध साफ हवा, खुला नीला आसमान और इन सब के बीच अकेले टहलते एक दो लोग यह सब कुछ अब अजीब नहीं लगता।
देश के कई बड़े शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई इन सभी महानगरों में लोग खुली सांस के लिए तरसते थे। माहौल कुछ ऐसा था और रफ्तार इतनी तेज थी कि लोगों को चिंता तो सताती थी, लेकिन उपाय का ख्याल नहीं आता था। इसी दौर में कोरोना ने दस्तक दी और सब ठप हो गया। इतना ठप हो गया कि नित नई उड़ान भरने वाले भी घर बैठे हैं, हर दिन कुआं खोदकर पानी पीने वाले भी घर बैठे हैं। जिनके पास पैसों का अंबार है और जिनके घर खाने की तकरार है, सभी घर बैठे हैं।
घर बैठना जरूरी है क्योंकि इस दौर की यही मजबूरी है। कुछ कह रहे कि धरती अपने आप को रिफ्रेश कर रही है। शायद उनका भी कहना सही है क्योंकि माहौल देखकर कुछ ऐसा ही लगता है। कल्पना कीजिए आप हर दिन हजारों लाखों पेड़ कटते थे, हर दिन नई इमारतें बनती थी। हर दिन कितना धुआं फैक्ट्रियों से निकलकर हमारे फेफड़ों में जाता था। हर दिन लोग दुनिया भर की चिंता लिए हुए घर से निकलते थे और वही बोझा ढोते हुए वापस आते थे, आज सभी घर पर हैं।
हालांकि इसका एक और पहलू है जो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिंदगी जब ठहर जाती है, उस वक्त भी पेट को खाने के लिए अनाज चाहिए होता है। जीवन यापन के लिए घर से निकलना जरूरी है, लेकिन अभी का माहौल है कि जान बचाने के लिए घर पर रहना आवश्यक है, तो जान बचाने और पेट भरने के बीच में एक हल्की सी रेखा खींच दी गई है। कौन किधर रहता है और क्या करता है? यही आने वाले कल को निर्धारित करेगा. यही बताएगा की समय और नियति आखिर चाहती क्या है!

– Adityamishravoice
Bilkul sach kahaa apne bhaiya 👌👌
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न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है
न गुज़र हदों से न हद बता यही दायरा है ये ठीक है
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बहुत खूब
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