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लगभग 2 महीने हो गए गांव आए हुए, पिछले 4-5 सालों में पहली बार इतना लंबा रुकना हुआ। लॉक डाउन ने कदम रोक रखे थे, वरना शहर तो बुला ही रहा था। कोरोना वायरस ने शहर का दम तोड़ रखा है, लेकिन गांव में अभी जान बाकी है। इन सब के बीच धूल भरी आंधी और मच्छरों की गुनगुनाहट अब आदत में शुमार हो गया। थोड़ा बाहर निकल कर कभी बगीचे में बैठना, कभी द्वार में टहलना भी शुरू हो गया। घर की गाय अब अनजान समझकर सींग नहीं मारती, गांव के कुत्ते भी भोंक कर थक गए थे।
जब गांव आया था तो शहर वाला था, पर अब 2 महीने में बदलाव आने लगा है। जिंदगी वहीं सालों पीछे लौट आई है, जब हर गली और मोहल्ला खेल का मैदान होता था। खेल खेल में दिन में पूरे गांव के एक दो चक्कर लग जाते थे।
सोचा आज फिर उसी गली में टहला जाए, फिर पुराने किस्सों को याद किया जाए। गलियां अब और व्यवस्थित हो गई थी, घर पक्के बन गए। लगभग सभी के घर रंगीन टीवी भी आ गया है और लाइट भी लगभग पूरे दिन रह ही जाती है।
गांव में अभी भी वही पुरानी सादगी जिंदा है, कोई भी नजर के सामने आते ही एक मुस्कान के साथ अभिनंदन करता है। जो जितना गरीब है, मुस्कुराते हुए उसके होंठ उतना ही खुलते हैं। यहां अपनापन दिखावा नहीं, दौलत है। शहर में शायद इसी का अभाव है।
खैर, गांव मुझे हर दिन कुछ नया सिखा रहा है। चरवाहों संग कभी भैंस नहलाता हूं, कभी बच्चों के साथ पेड़ पर चढ़ जाता हूं। अभी आंधियों में आम लूटने भी जाना है, जब तक यह लॉक डाउन है. जी भर कर धूम मचाना है।

– Adityamishravoice
Thank you for sharing this picture of village life.
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🙏
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अवश्य गाँव की सादगी और निश्चिंत जिंदगी को जी भरकर जिएँ। ✌👍💐
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जी बिल्कुल
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