कला कलम की

लेखक कागज को मोड़कर, शब्दों को जोड़कर अक्सर एक आकार देने निकल पड़ता है। कलम का हाथ थामे ना जाने किन किन रास्तों से होता हुआ, कहां पहुंच जाता है! शब्दों की एक लंबी कतार सी लग जाती है, उनके बीच आवाज तो नहीं होती लेकिन बहुत कुछ सुनाई दे जाता है।

धीरे धीरे इन सब के बीच अपनापन सा लगने लगता है, कुछ शब्द है तो अपने आप ही खास बन जाते हैं। उनके बिना किसी सफर की शुरूआत ही नहीं होती। रास्तों के बीच कई बार रास्ते बनते जाते हैं, लिखते लिखते हम भी संभलते जाते हैं। कलम कितनी बदली पेंसिल से पेन और फिर डिजिटल शब्दों का उदय, लेकिन भावनाएं अब भी वही पुरानी वाली है।

इस सफर पर किसी और संसाधन की कभी जरूरत महसूस ना हुई, शब्द और दिमाग आपस में संतुलन बनाकर कागज को भरते जाते हैं। कागज भी उसी गागर के समान है, जो खूबसूरत स्त्री अपने सिर पर रखकर पोखर तक जाती है। फिर उसे नहला कर पानी से भर देती है। पानी से भरी गागर और शब्दों से भरा कागज, सभी की प्यास बुझा देते हैं।

कभी-कभी लिखते लिखते थकान भी हो जाती है, या ऐसा लगता है कि अब कलम की नोक जवाब दे रही है। फिर थोड़ा ठहर कर विचार करते हैं, शब्दों के मकड़जाल को सुलझा कर नई ऊर्जा का संचार करते हैं। हर एक सफर जरूरी नहीं है, खत्म हो जाए। कई बार लेखक एक पड़ाव पर आकर कलम रोक देता है, फिर वहां से सफर को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी पाठक की होती है। हम उतना ही सफर तय कर पाते हैं, जितना हमें ज्ञान & अनुभव होता है। इसके बाद की कहानी लिखने के लिए थोड़ा और अध्ययन जरूरी हो जाता है।

लिखना एक ऐसी क्रिया है, जिसमें आपके अपने अनुभव और वर्तमान परिस्थितियों का निचोड़ शब्दों के रूप में बाहर आता है। कई बार दूसरों का हाथ थाम कर भी लिखा जाता है, जहां अनुभव और माहौल सामने वाला आपको बताता है और आपके शब्द उसे आकार देते हैं।

लिखना मॉर्निंग वॉक करने के समान है, मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह उतना ही जरूरी है। भावनाओं को कागज पर उतारकर हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को और मजबूत बनाते हैं। कई बार मन की उठापटक कागज पर आकर काफी आसान लगने लगती है। इसीलिए शब्दों के घोड़े पर बैठकर सैर करते रहें, आपके बनाए पदचिन्ह आपका मार्गदर्शन जरूर करेंगे।

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13 thoughts on “कला कलम की

  1. नमस्कार आदित्यजी, आपका कलाम लेख बहोत है बेहतरी न उतर या कागजपर… शुभ दिन… शुभ शुरवात …जैसे प्रभात कीरन!

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