मनवा तो पंछी भया, उड़ि के चला आकाश…
कबीर दास ने मन को पंछी बनकर उड़ा दो दिया, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि यह एक हवा का गुब्बारा बन फूट भी सकता है. मन के भीतर कई बार विचारों की अधिकता हो जाती है. उस समय आकाश में उड़ रहा मन का पंछी अपने भीतर की उठापटक झेल नहीं पाता. इस कशमकश में या तो पंछी बसेरे में वापस लौटने लगता है या फिर आगे बढ़ते रहना चाहता है. दोनों ही परिस्थितियों में मन की हालत खराब ही होनी है. इसीलिए कई बार यह गुबार फूट जाता है और विचारों की घनघोर बारिश होने लगती है. इसी बारिश को मन की भड़ास कहते हैं.
आपने मन की बात कई बार सुनी होगी. 2014 के बाद भारत के प्रधानमंत्री भी अक्सर रेडियो पर देशवासियों से मन की बात करते हुए दिखाई दे जाते हैं, लेकिन मन की भड़ास कभी-कभी सुनाई देती. वास्तव में बात करने का सही अंदाज और अर्थ मन की भड़ास में ही निकल कर आता है. इस तरह की बात कहने से पूरी बात भी हो जाती है और सुकून भी मिलता है. पर जब बात को दबाने का प्रयास किया जाता है, तब यही मन बगावत पर उतारू हो जाता है. इसलिए बातों को दबाने की कोशिश करना कई बार बात को बिगाड़ भी सकता है.
मन की बात और मन की भड़ास अक्सर बिना ब्रेक और अनुशासन की हो जाती है. जितनी ज्यादा भावनाएं होंगी, उतना ही नियम कानून टूटने की संभावना रहती है. मन की भड़ास के लिए किसी और रेडियो व टीवी जैसे माध्यम की भी आवश्यकता नहीं होती. लेकिन हां एक बात है, मन की भड़ास अक्सर आसपास के मुद्दे, घटना और माहौल से जुड़ी होती है. इसमें तथ्यों के साथ-साथ भावनायें भी लिपट कर बाहर आती हैं. वास्तव में अंदर का सारा गुस्सा और द्वेष निकल कर बाहर आ जाता है. यह बारिश हर रोज नहीं होती, कभी कभी जब ऐसी परिस्थिति बनती है तब यह ज्वालामुखी सक्रिय हो जाता है.
मन की बात अक्सर आप रेडियो पर प्रधानमंत्री के द्वारा सुनते आ रहे हैं. कई बार यह कार्यक्रम खत्म होने के बाद विपक्ष की जो प्रतिक्रिया होती है, वह मन की भड़ास के अंतर्गत आती है. जनता भी कई बड़े अवसरों पर अपने दिल के गुबार को शब्दों में पिरो कर बाहर निकालती है. यही सब अवसर होते हैं, जब मन की भड़ास चलन में आती है.
वैसे जितने भी बड़े सेलिब्रिटी टाइप लोग होते हैं, उनके लिए इसका कोई सार्वजनिक महत्व नहीं है. कभी-कभी वह मन की भड़ास को मन की बात की तरह बोल देते हैं और उसमें भी तर्क का सहारा लेकर मामला सुलझा दिया जाता है. जो व्यक्ति जितना बड़ा होता है, वह उतना ज्यादा मन की बात करता है. जो व्यक्ति जितना सामान्य व छोटा होता है, वह अपनी बातों को उसी तरह बोल जाता है जैसा सोचता है.
मन की भड़ास वास्तव में मन की सच्ची व्यथा होती है,
जबकि मन की बात एक मनगढ़ंत कथा होती है.
Adityamishravoice
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Very nicely put, mann ki bhadas nikalana bhi zaroori hai, n i think writing is one way to do it
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correct, thank you
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💓
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Thanks Aradhana
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Welcome!
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Totally amazing
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बहुत धन्यवाद
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