ऐसा एक बार नहीं अक्सर होता है, जब लगता है सब कुछ हाथ से छूटता जा रहा है। जब बिना हवा के भी आंधियां चलने लगती हैं और सब कुछ ताश के पत्तों जैसा बिखरता हुआ लगता है। तब मेरे शब्द हर बार मेरा सहारा बनते हैं। कलम चलती है और कमाल हो जाता है। आंखों के सामने सब साफ-साफ नज़र आने लगता है। कोई जादू या टोटका नहीं है, बस शब्दों का समन्वय है। जो मजबूरी को मजबूती में बदल देता है।
रोज कलम ऐसी नहीं चलती और न ही शब्दों का ऐसा संगम नज़र आता है, पर हां-:
जब मन हताश होता है,
धुंधला आकाश होता है.
जब हाथ कंपकपाते हैं,
जब हम खुद से नज़रें मिलाते हैं।
तब कलम संबल बन जाती है,
फिर यही हमें नया रास्ता भी दिखाती है.
हर बार हमें दिखने की जरूरत नहीं होती, कई बार कुछ शब्द लिखने से काम बन जाता है। वास्तव में लिखना एक प्रकार का योग है, जहां शब्दों का संयोग और मन के भाव उमड़कर बाहर आते हैं। कोरे कागज़ पर जब कलम चलती है, तो बहुत कुछ साफ और स्वच्छ हो जाता है। ज़रूरी नहीं कि हर दिन लिखा ही जाए, पर जब आंखों के आगे अंधेरा छा रहा हो। भीतर शब्दोें का भंडार हो, ऐसे में कोरा कागज ही सबसे हितकर होता है। कागज़ कभी सवाल नहीं करता और कागज के दीवारों की तरह कान भी नहीं होते।

Nice bhai
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thanks ji
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🌼हर हर महादेव🌼
अतिसुन्दर अभिव्यक्ति……..
😇😇😇😇😇😇😇
बहुत अच्छा लगा …..
👌👌👌👌👌👌👌👌
आभार🙏…..
🌷🌸जय श्री राम🌸🌷
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धन्यवाद
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Can’t agree more…loved the piece I think every writer can relate to your words….👌👌👌
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Thanks
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Bahat ache se likhe hain… Acha laga padhke 🙏🏻
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बहुत धन्यवाद आपका
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Again a lovely one..!🌸🌸🕊
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🙏💐
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