“अच्छा, और वह गाड़ी किसकी है? यह कपड़े, चप्पल यह सब तुम्हारा ही है! किसान तो नहीं लगते तुम. रुको, अभी किसान दिखाता हूं.”
साहब ने किसी को आवाज दी, उधर से धीरे-धीरे एक हाड मांस का शरीर आता दिखाई दिया. तन पर कपड़ों से ज्यादा चमड़ी लटक रही थी. पतला दुबला पैर और कमर पर अटकी एक धोती. यह धोती खेत की वर्तमान दशा बता रही थी, मिट्टी का हाल और फसल की चाल.
रह-रहकर वह ऊपर की ओर देख रहा था, शायद बारिश का इंतजार कर रहा हो. दोनों आंखों को मिलाकर भी शायद 10 फुट से ज्यादा नहीं देख पा रहा होगा. जैसे ही नजदीक आया, साहब बोले- “लो, देख लो. हमारे यहां ऐसे ही किसान मिलते हैं.”
आगंतुक ने ऊपर से नीचे तक किसान की प्रतिमूर्ति को निहारा. फिर मोबाइल में तारीख देखी, जिसमें 2020 अंकित था. मन ही मन सोचा, किसान आज भी कितना अनजान है. अपनी मेहनत के फल से, बदलते कल से, राजनीतिक खेल से, सब ओर भ्रष्टाचार के मेल से.
आगंतुक ने किसान को प्रणाम किया. साहब ने उसे जाने का आदेश दिया. उसके जाते ही आगंतुक से साहब ने फिर समझाते हुए कहा- “देखा ऐसे होते हैं किसान. मेहनती, अपने काम से काम रखने वाले. दिन रात खेत में मेहनत करके बैंक का लोन और कर्जा चुकाने वाले. इसके बाद कुछ बच जाये तो हंसी खुशी घर जाने वाले. अगर न बचे, तो फिर चुपचाप कर्जा लेकर खेत में अपना पसीना बहाते रहते हैं.”
साहब ने चाय की चुस्की लेते हुए, फिर कहा- ” अरे अगर सच में चाहते हो कि तुम्हारी बात सुनी जाए. तो पहले किसान बनकर आओ. खुद को मिट्टी से लपेटो, पैरों की चाल धीमी करो, तन की चर्बी घटाओ. थोड़ा झुको और शालीनता का चोगा चढ़ाओ. दोनों हाथों को जोड़कर विनती करते हुए आओ.
आगंतुक ने जेब से काला चश्मा निकालकर आंखों पर चढ़ाया. कुर्ते को झाड़ते हुए गाड़ी की तरफ बढ़ गया. साहब इस ताव को तब तक देखते रहे, जब तक कार का धुआँ इन हवाओं में ना मिल गया.
फिर बुदबुदाते हुए आगे बढ़े- “आजकल जिसे देखो, किसान बन रहा है. कौन किसान कार चलाता है भाई!
Bahut khuub likha h apne
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बहुत धन्यवाद
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Bht sunder ♥️
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Thanks
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Bahut khoooooob likha hai💯💯💯💯
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Thanks bro
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एकसुंदरआलेख!!
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Thank you
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