
एक धूप सी सर्द चादर
अंधेरे का एक रूप
सूरज को खुलेआम चुनौती और
ठंड का एक प्रतीक.
आंखों को कुछ ना दिखने का भ्रम
नज़र हो पर कुछ नज़र ना आए
काली नहीं सफेद चादर है कोहरा
एक ठंडे जज्बातों की भीड़.
एक भाव, कंपकपाते विचारों का
दिन के उजाले में भी दीपक जलवाता है
कोहरा ऐसे ही कोहराम मचाता है.
इस सफ़ेद दीवार के आर पार
कई और दीवारें हैं.
कुछ उलझ गई हैं बातों में
कुछ अकड़ गईं हालातों में
हम अक्सर इन के आर पार हो आते हैं,
कोहरा है कहर नहीं,
ये रास्ते ही हमें रास्ता बताते हैं.
अंधेरे को चरागों से दुबकते तो देखा है,
कभी कोहरे में भी दीपक जलाते हैं.
क्या कोहरे को कभी सूरज ने रोका नहीं,
कोहरे के पीछे सूरज है, इसमें भी कोई धोखा नहीं
क्योंकि
प्रकाश ही अंधकार को शरण देता है.
Beautiful poem
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thanks
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Wonderful writing
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Excellent!
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Thank you
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It’s been my pleasure reading such beautiful hindi poetry!
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Thanks
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Beautiful page!
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Thanks
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Superb dear
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Thanks bhai
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Very nice 😊
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thank you
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