कोहरे को भी कोसना कैसा

Adityamishravoice

एक धूप सी सर्द चादर
अंधेरे का एक रूप
सूरज को खुलेआम चुनौती और
ठंड का एक प्रतीक.

आंखों को कुछ ना दिखने का भ्रम
नज़र हो पर कुछ नज़र ना आए
काली नहीं सफेद चादर है कोहरा
एक ठंडे जज्बातों की भीड़.
एक भाव, कंपकपाते विचारों का
दिन के उजाले में भी दीपक जलवाता है
कोहरा ऐसे ही कोहराम मचाता है.

इस सफ़ेद दीवार के आर पार
कई और दीवारें हैं.
कुछ उलझ गई हैं बातों में
कुछ अकड़ गईं हालातों में
हम अक्सर इन के आर पार हो आते हैं,
कोहरा है कहर नहीं,
ये रास्ते ही हमें रास्ता बताते हैं.

अंधेरे को चरागों से दुबकते तो देखा है,
कभी कोहरे में भी दीपक जलाते हैं.
क्या कोहरे को कभी सूरज ने रोका नहीं,
कोहरे के पीछे सूरज है, इसमें भी कोई धोखा नहीं
क्योंकि
प्रकाश ही अंधकार को शरण देता है.

19 thoughts on “कोहरे को भी कोसना कैसा

  1. बहुत खुब । आपका कहने का लहजा, चेतना और रास्ता ढुँढ लेने की जीजिविषा सबको प्रेरित करती है ।

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  2. नमस्कार श्री आदित्यमिश्र्विसो।

    आपकी कविता के लिए धन्यवाद:

    मेरा जवाब:

    अंधकार के बिना प्रकाश नहीं है
    मैं सूरज को चुनौती नहीं दे सकता
    वह मुझसे बड़ी है

    ब्रह्माण्ड
    यह बहुत ठंड है
    इसकी विशालता में
    उसका अंधेरा

    जिसमें तारे खड़े हैं
    विचार से पहले भी
    हमें खुद को दिखाना चाहते थे

    मैं ब्रह्मांड में देखता हूं
    भीतर और बाहर
    आंखों की मेरी जोड़ी के साथ
    मेरे दिल में
    और आँखों से
    मेरे चेहरे से
    दुनिया की वास्तविकता में

    भावनाओं मौसम हैं
    यह एक आंधी है
    हमारे भीतर तूफान और बारिश का रूप
    कोहरा सूरज को रास्ता दे सकता है

    छिपा हुआ
    रहस्य
    वह एक नहीं
    समझने योग्य
    एक की जरूरत नहीं है

    केवल कमजोर व्यक्ति
    उसकी जरूरत है
    बाहर की दुनिया से
    आंतरिक दुनिया
    उसकी छोटी चेतना में
    उसकी छोटी मोमबत्ती
    जल्दी से बाहर जा सकते हैं कि
    जो उसकी रक्षा करता है

    मैं आपको नमस्कार करता हूं
    ज गामा

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