ऑक्सीजन की तलाश और आस लगातार जारी है. जिनके पास कुछ नहीं है, वह अपना सब कुछ जुटाकर सांसे खरीद रहे हैं. जिनके पास सब कुछ है, वह कितना कुछ भुलाकर वोट जुटा रहे हैं.
जीवन इतना कठिन, सांस इतनी महंगी हो जाएगी. किसने सोचा था? हवाओं के बीच हंसते गाते लोग, सिलेंडर लादे लाइन में लगे हुए हैं. उम्मीद है कि शायद कहीं से कोई मदद मिल जाए. एक सांस जोड़ने के लिए, कितनी दौड़ लगाई जा रही है.
सरकार तो तू-तू मैं- मैं में मस्त है. कोई दिनभर टीवी पर आकर अपना बखान कर रहा, तो कोई माइक लगा कर दूसरों की कमियां गिना रहा. एक्शन के वक्त, प्रवचन चालू है.
अटकी हुई सांसे लेकर अस्पताल में बेड का इंतजार है. एक ऑक्सीजन सिलेंडर को जुटाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगाया जा रहा है. सारे वादे, सब नेटवर्क. इतनी जल्दी आउट ऑफ नेटवर्क हो जाएंगे, सोचा नहीं था!
अस्पताल में डॉक्टर लगातार कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं. बाहर अन्य कर्मी अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे रहे हैं. लेकिन कड़े एक्शन, सराहनीय कदम तो सिर्फ माननीय ही उठा रहे.
विपक्ष, जो खुद वेंटिलेटर पर है, उस पर नकारात्मकता फैलाने का आरोप लग रहा है. पक्ष कह रहा है सब ठीक हो रहा है. मीडिया बता रहा है, सब एक नंबर है. जनता सोच रही है, यह टीवी और चैनल तो अपने यहां का ही है. पर खबर कहां से बनकर आ रही है, पता नहीं ???
-Adityamishravoice
Wonderful post
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