सवाल ये नहीं कि कौन निंदा कर रहा है या कौन राजनीति पर उतारू है? मुद्दा यह है कि आखिर ऐसा क्यों होता है?
प्रशासन का रवैया और सरकारों का मत घटना होने के बाद एक सा हो जाता है। एक कड़ी कार्रवाई की सांत्वना देने लगता है, जबकि दूसरा निलबंन का टोकरा उठाने।
निर्भया के बाद ऐसा लगा कि बेटियां अब निर्भय होकर सड़क पर चलेंगी, लेकिन उसके बाद न जाने कितने कांड हुए, रोज हो रहे हैं। वास्तव में यह सब हमारे लिए एक सामान्य सी बात हो गई है। लाचारी का बोझ हम लगातार ढोते आ रहे हैं। चाहे वह बेरोजगारी का मुद्दा हो, अर्थव्यवस्था की बात हो या महिला सुरक्षा का मसला हो।
हमने सरकार से सवाल पूछना बंद कर दिया है, उन्होंने भी जवाब के नाम पर ट्वीट करना चालू रखा है। प्रशासन अपने में मस्त है, कहीं जुबान खोलने पर बुलडोजर चल जा रहा तो, कहीं इज्जत तार-तार होने के बाद भी उफ़ तक नहीं।
कोई बॉलीवुड की व्हाट्सएप चैट के मजे ले रहा, कोई ड्रग्स के इतिहास- भूगोल पर अध्ययनरत है। अब नया मुद्दा बिहार चुनाव है, ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होने वाला है। अब सबके पीछे जासूस लगाये जायेंगे, सरकारें विपक्ष की धोती खोलेंगी तो विपक्ष सरकार पर झपट्टा मारने की कोशिश करेगा।
इन सबके बीच आम जनता दर्शन का मजा ले रही है। कोरोना हो या पड़ोसी का रोना हो, अब फर्क नहीं पड़ता। मीडिया आइटम नंबर करने में व्यस्त है। वास्तव में हाथरस के लिए सिर्फ दोषी दो-चार नहीं, हम सभी हैं। बिना मास्क लगाये या लॉकडाउन में एक आम आदमी बाहर निकलने से जितना डर रहा था, उतना डर भी इन दरिंदों में क्यों नहीं है? पुलिस की लाठी हमेशा गुनहगारों पर पड़ने से पहले राजनीतिक दरवाजे पर दस्तक क्यों देने लगती है?
हम अब गलती नहीं गुनाह कर रहे हैं, हर दिन महिलाओं-बच्चियों के साथ दरिंदगी की खबर देखकर अगर अब भी गुस्सा नहीं आता तो किसी बड़ी त्रासदी के लिए तैयार रहें। सरकार अगर ऐसे अपराध नहीं रोक पा रही, तो क्या बेटी को बचाना और क्या बेटी को पढ़ाना! कड़ी निंदा, ठोस कदम से ऊपर उठकर जमीन तलाशने की ज़रूरत है। घर पर बैठकर ट्वीट करने से ज़िम्मेदारी खत्म नहीं होती।
नेता भी अब मानव कम, परजीवी ज्यादा हो गये हैं। आपका वोट, समर्थन, पैसा लेकर आपको ही लाचार बना रहे। हम लोग अभी भी किसी भीड़ में खड़े होकर, दोनों हाथ उठाकर नारा लगा रहे… बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. लेकिन बेटी का तो आधी रात ही अंतिम संस्कार हो गया… खैर यही भीड़ हमारा वज़ूद है और मंच नेताओं का सौभाग्य… ऊँ शान्ति 🙏
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Thanks
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Thanks
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That’s great..!
Well penned😁🙌🏻
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Thanks
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Absolutely true ….
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Thanks
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Aditya I read u r post… It was so embarrassing topic…अब इस बात को लेकर पॉलिटिक्स होंगा… तारिख पर तारिख चलेगी! आये दिन यही तो हो रहा…. सरकार कोई ठोस कदम नही उठाती इसलिए ऐसी घटनाओं को होना भी वाजिब है!
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ji
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It’s so apt.
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Absolutely right ….
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Absolutely correct 😔
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Thank you Srishti
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ये सब बेकार की बाते हैं। भारत में यही तो चलता है बस, सरकार, सरकार और सरकार। बलात्कार हो गया तो सरकार, कोई बेकार हो गया तो सरकार, एक बच्चा फालतू हो गया तो सरकार। कोई समाज से कभी नहीं पूछता कि बलात्कारी पैदा कहां से हो रहे हैं। पकड़ने ना पकड़ने का सवाल तो बाद का है। नब्बे प्रतिशत बलात्कार तो परिचित लोग ही करते हैं। अब क्या हर घर में भीतर पुलिस तैनात कर दी जाए। जब भी ऐसा कुछ हो तो सरकार पर डाल दो सब कुछ। जनता मौज ले रही है बस। किसी की प्राइवेट चैट पब्लिक होने की मौज ले रही है बस।😂😂😂🙏
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आपका कटाक्ष अच्छा लगा पढ़कर,पहली ही लाइन से कुछ ऐसा ही कहने का प्रयास किया है.
बस आखिर में आपका मुस्कुराना थोड़ा अटपटा लगा. इसके अतिरिक्त बहुत धन्यवाद आपको अपने विचारों के लिए
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आभार 🙏🙏
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True thoughts!!!
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thanks
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